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इस पोस्ट Shri gupta in hindi में हम गुप्त वंश के संस्थापक श्री गुप्त के बारे में परीक्षा के दृष्टिकोण से कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर चर्चा करेंगे और श्री गुप्त के इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं को जानेंगे।
कुषाण वंश के पतन के बाद उत्तर भारत में बहुत अधिक अव्यवस्था फैल गई थी इस अव्यवस्था का लाभ उठाकर अधिकतर प्रांतीय सामंत राजाओ ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया।
ऐसा माना जाता है कि ठीक इसी प्रकार एक व्यक्ति श्रीगुप्त भी था
गुप्त वंश की स्थापना महाराज श्रीगुप्त ने लगभग 240 ईसवी में की थी।
श्री गुप्त का मूल नाम गुप्त था महाराज बनने के बाद उसने खुद को श्री की उपाधि दी जिससे उसका नाम श्री गुप्त पड़ा।
विदेशी विवरण
चीनी यात्री इत्सिंग के अनुसार श्री गुप्त ने अपने राज्य का विस्तार मगध के पूर्व मैं किया था
अपने राज्य के विस्तार के बाद श्री गुप्त ने महाराज की पदवी ग्रहण की थी
वैसे तो महाराज श्री गुप्ता स्वयं बौद्ध नहीं थे परंतु बहुत से चीनी बौद्ध तीर्थ यात्री तीर्थ दर्शन के लिए उस समय भारत आने लगे थे इसलिए महाराज जी गुप्त में उन यात्रियों के लिए मृग शिखा मन के समीप एक बिहार का निर्माण करवाया था और उस बिहार के खर्च मोहन के लिए 24 गांव को भी दिया था।
इस काल की अब तक दो मुद्राएं मिली है जिनमें से एक पर श्रीगुप्तस्य से और दूसरे पर गुत्सय से लिखा हुआ है
प्रभावती गुप्त के द्वारा लिखित ताम्रपत्र अभिलेख महाराज श्री गुप्त का उल्लेख गुप्त वंश के आज के रूप में मिलता है इन लेखों में श्री का गोत्र धरण बताया गया है परंतु कुछ इतिहासकारों का मानना है कि वैश्य जाति से संबंधित थी।
श्री गुप्त के द्वारा धारण की गई महाराज की उपाधि उस समय सामंतों के द्वारा धारण की जाती थी जिससे यह लगता है कि श्री गुप्त एक स्वतंत्र राजा नहीं था वह किसी के अधीन शासन करता था इतिहासकार पी के जायसवाल के अनुसार श्री गुप्त भारशिवो के अधीन शासन करता था।
श्री गुप्त का शासन लगभग 40 वर्षों तक था इस तरह से श्री गुप्त का शासनकाल 280 ई में समाप्त हुआ।
श्री गुप्त के बाद उसका पुत्र घटोत्कच का उत्तराधिकारी बना और उसने 280 से 319 ई तक शासन किया।
श्री गुप्त के पुत्र का क्या नाम था?
गुप्त के पुत्र का क्या नाम घटोत्कच था
गुप्त वश का संस्थापक कौन था?
गुप्त वश की स्थापना श्री गुप्त ने की थी।
श्री गुप्त ने कितने वर्ष शासन किया?
श्री गुप्त का शासन काल लगभग 40 वर्षों तक था।